उसका बाप सुबह–सुबह तैयार होकर काम पर चला गया। मां उसे रोटी देकर, ढेर सारे कपड़े लेकर नहर पर चली गयी।
वह घर से बाहर निकली थी कि उसी तरह रुखे–उलझे मैले बालों–वाली उसकी सहेली अपना फटा और थोड़ा ऊँचा फ़्राॉक बार–बार नीचे खींचती आ गयी। फिर एक–एक करके बस्ती के दो–चार बच्चे और आ गये।
‘‘चलो घर–घर खेलेंगे’’
‘‘पहले खाना बनाएँगे, तू जाकर लकड़ी बीन ला। और तू यहां सफाई कर दे।’’
‘‘अरे ऐसे नहीं। पहले आग तो जला।’’
‘‘मैं तो इधर बैठूंगी।’’
‘‘चल अपन दोनों चलकर कपड़े धोयेंगे’’
‘‘नहीं चलो, पहले सब यहां बैठ जाओ। खाना खाओ फिर बाहर जाना।’’
‘‘मैं तो इसमें लूंगा।’’
‘‘अरे ! भात तो खत्म हो गया। इतने सारे लोग आ गये.....चलो तुम लोग खाओ, मैं बाद में खा लूंगी।’’
‘‘तू मां बनी है क्या ?’’