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लघुकथाएँ - देश - पूरन मुद्गल
जीत

छोटू दिन–भर का काम करता, रात को मेरे बेटे राजू के साथ खेलता। अब वे आँख–मिचौली खेल रहे हैं। घर में वे जहाँ कहीं भी छिपते, एक–दूसरे को जल्दी ही ढूंढ़ लेते...और इस बार राजू मेरे पास रजाई में आकर छिप गया है। छोटू ने उसे चारपाई के नीचे, सोफे के पीछे, स्टोर में, गुसलखाने में...हर जगह देखा, परंतु ढूंढ़ नहीं पाया। बेचारा खेल में हार गया।
सुबह छोटू का बाप उससे मिलने आया तो छोटू ने मासूमियत से कहा, ‘‘बाबा, आज रात तुम यहीं सो जाना। फिर मैं भी राजू को हरा दूंगा। सोओगे ना बाबा?’’

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