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बस गंतव्य की ओर अपनी गति से बढ़ी जा रही है और मार्कण्डेय जी भी उस बस के एक यात्री है। वह सबसे आगे दाहिनी खिड़की की ओर बैठे हैं। वह खिड़की से बाहर पीछे छूटते जा रहे दृश्यों का अवलोकन करते जा रहे हैं और अपने जीवन को प्रकृति से जोड़ते हुए सोच रहे हैं। कभी वह प्रफुल्लित लगने लगते हैं और कभी उदास। इतने में उनके पीछे की सीट से हल्के-हल्के दो नारी-स्वरों का वार्तालाप उनके कानों से टकराया, जो उन्हें सुखद लगा।
अब उनकी दृष्टि तो खिड़की से बाहर थी, किन्तु मन अपनी पिछली सीट पर। उनका चेहरा कुछ द्वन्द्व एवं कुछ तनाव में दिखने लगा। अपनी उम्र और प्रतिष्ठा को देखते हुए वह चाहकर भी अपने पीछे घूमकर देख नहीं पा रहे हैं और मन ऐसा है कि उन्हें पीछे मुड़कर देखने का बाध्य कर रहा है। किन्तु लोकाचार के हाथों विवश मार्कण्डेय जी पुन: खिड़की से बाहर पीछे की ओर भागते जा रहे दृश्यों को देखने लगते हैं। अब वह प्रकृति को अपने से नहीं, पिछली सीट पर बैठी नारियों से जोड़कर सोच रहे हैं। उनके मानस-पटल पर कभी युवतियों के चेहरे उभरते हैं, कभी अधेड़ और कभी उससे भी अधिक आयु एवं सुंदरता का अनुमान वह अवश्य लगा रहे हैं। फिर अनुमान ही हुआ करता है।
उन्हें झुँझालाहट हो रही है कि बस कहीं रुक क्यों नहीं रही है? बस रुके और वह ज्ञरा अपनी सीट से हटें और पीछे सहज रूप से देख सकें; अपराधबोध से भी बचा जाए। किन्तु बस चलती ही जा रही है।मौसम थोड़ा ठंडा होने लगा है। हवा के झोंके उन्हें अच्छे लग रहे हैं, आनन्द प्रदान कर रहे हैं। मन में कहीं हल्की-सी गुदगुदी भी हो रही है। चेहरा प्रफुल्लित-सा होने लगता है। उन्हें हरियाली दिखाई पड़ रही है।
बाहर हल्की बूँदाबाँदी आरम्भ हो जाने के बावजूद उन्हें इसका कोई एहसास नहीं है। वह पीछे बैठी नारियों के रूप एवं स्वरूप की कल्पना में खोए हैं। एक से एक सुन्दर चेहरे मानस-पटल पर बाहरी । दृश्यों की तरह आते और ओझल होते जा रहे हैं। तेज हवा के झोंके के साथ पानी के हल्के छींटे खिड़की के खुले कपाटों से उनके चेहरे को भिगो रहे हैं, मगर उन्हें उसका कोई विशेष एहसास नहीं हो पा रहा है। एकाएक पीछे से नारी-स्वर हल्के-से उनके कानों से टकराया, "अंकल! प्लीज खिड़की बन्द कर दीजिए न!"
इस स्वर ने उन्हें चौंका दिया और उनके मुँह से निकला,"अच्छा बेटा!" और किसी स्वचालित मशीन की भाँति उनके हाथ खिड़की की ओर बढ़ जाते हैं और धीरे से खिड़की को बन्द कर देते हैं।
अब उनका मन शांत हो गया है और उनकी निगाहें सामने बैठे बस चला रहे ड्राइवर की पीठ से चिपक जाती हैं।
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