भिनसारे केर उजियार के जीवन प्रवाह और गीले खेतन की माटी की सोंधी मह–मह करती महक को पछुआ पवन ले बहे फरर–फर फर। माथे पे उगी ओस को पी जाए,औ खेतन पे पिले पड़े खेतिहर बदल जाएँ गमकउआ महुआ के फूलन मां।
सब ओर हरे–हरे हरहराते खेत। सब खेतन मां एकौ ठाकुर अजुद्धा परसादौ केर खेत। ओ मां भी गम–गम गमकते महुआ के फूल। सबै लगन सबै मगन। ओस में बूड़ी गम–गम गमकती सोंधी माटी, ओस में बूड़े खेत, खेतन में खैलैं हंसते–किलकते बिरवै। बिरवन से खेले खेतिहर। खेतिहरन मां एक सत्तू। काली चमर–चमर पसीने से चमकती ठसी ठुसी ताड़ अस गठी देह। ठाकुरै के खेत पर ठाकुर का नमक हलाल। नमकै भकोसे और नमकै बहाए और नाम बताए बालू। बालू, सत्तू बैठे नियरै नियरै। राम जुहार, कहो सरकार! का हार चार। दोनों के आंसू, दोनों की हे–हे, दोनों की हां–हां, सब साथै–साथै। हृदय में दाह, पीर, बालू की अघाए–अघाए सांसे। बिन आंसू–सिसकी केर विलाप, ‘‘लागै है हरामी आज मारै डारी जान। अपन लरिकौ केर बैरी हुई गा रे। गंगा लाभ करा देई आज।’’ निराई करत–करत सत्तू पूछित, ‘‘अरे को, मार देई,केकर मार देई।’’ बीड़ी केर धुएं संग बालू फूंकिस–‘‘औ को, मलिकवां मार देई, दैत हुई गा है रे।’’ फिर अघाई सांस। पर सत्तू की सांस गई अटक।
बिन कपड़न वैसे ही लंगोटी मां भागा। लागे है पीछे अगिया बेताल आऐ लागा। मुसहर टोला, अहीर टोला, बाभन टोला और परकटे विहंग सा गिरा आकर अजुद्ध परसाद के आगे। रिसते रक्त का चित्कार। पैरों में चिमटा परकटा विहंग। दुहाई हौ सरकार–दुहाई हौ। ठाकुर धुन्ना बन गवा रहै औ लरिका रुई केर ढ़ेर। रुई धुनकता धुन्ना अचानकै वापिस ठाकुर अजुद्धा परसाद में और ढेर लरिके में बदलि गया। विहंग ने फिर विलाप किय, ‘‘हजूर हमका मार लेयो, बचऊ का छोड़ देयो, माफ कर देयो मालिक । घर केर चिराग है। हजुर...मालिक......अन्नदाता....।’’
अबकि सत्तू बना ढेर । ठाकुर बन के धुन्ना पिल पड़ा ओपे ‘‘काहे बे तोहार प्रान काहे निकलत हैं । तोहार अम्मा काहे.....है । तोर काहे फटत है।’’ हाथ,पैर,मुँह सबै साथै चलै। धुन्ना उबल–उबल के पिला ढेर। दे धाड़–दे धाड़, खूब धुनका। एक बार फिर सब बदल गवा। धुन्ना से ठाकुर निकला ढेर से सत्तू। ठाकुर ने सत्तू के धकेला एक ओर। ठंडी–ठंडी नाल दोनल्ली केर, काली–काली, चम–चम, खूनखोर। गरम–गरम हाथ ठाकुर केर। ठाकुर कि दहाड़ ‘‘आज तो ससुर किस्साए खतम कर देव ।’’
ढेर से निकला सत्तू भी फुँफकारा, वहीं सहमी–सहमी बैठी अपनी मेहरारू से अपन लरिका का छीनकेर चढ़ी गवा आँगन के कुँए की जगत पे। और दहाड़ा,
‘‘हौ सरकार! करो किस्सा खतम, हमऊ कर देब ई किस्सा खतम।”
ठाकुर हँसी में जहर फूँकिस ‘‘तोहोर कौन किस्सा बे।’’
सत्तुआ आंखिन का लाल–लाल निकार के चीखा, ‘‘वही किस्सा जो आप हमरी लोगाई के संग शुरू किए रहै।’’
ठाकुर की झल्लाहट ‘‘अबे माँ के....,कौन किस्सा? का लाल बुझक्कड़ बनत है। साफ–साफ बूझो न।”
फिर बदला सबै कछु, कोउ न मालिक न नौकर सब भूलि के सत्तू दहाड़ा,
‘‘ई तो आपौ जानत हौ कि इ लरिका केकेर है?’’ हाथ में थमे अपने लरिका को पंच सेरी कद्दू की नाईं हवा में सत्तू ने लहराया।
‘‘अब जो आप हमरे लरिका के परान लैहो तो आपहू केर लरिका न बची। इ अगर तोहार खून है, तो उ हमार।’’