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लघुकथाएँ - देश - रामकुमार घोटड़
जन्मदिन का तोहफा

आज वो अपना जन्मदिन प्रथम बार मना रहा था। वैसे तो जिन्दगी का एक दशक बीत गया था लेकिन जन्मदिन मनाने की समझ व परिपक्वता नहीं आई थी। माँ के साथ साहब लोगों के घर काम करने वो अक्सर जाता रहा है। उन बड़े घरों में बच्चों के जन्मदिन मनाने के तौर–तरीके वे अमूल्य उपहारों ने उसके दिल में भी जन्मदिन मनाने की लालसा पैदा कर दी।
मां रसोई पकाने का काम कर रही थी। बापू अभी शहर से नहीं लौटे थे। वो पास–पड़ोस के पाँच–सात बच्चों से घिरा मोमबत्तियाँ जलाते समय अपार खुशी अनुभव कर रहा था। ये वही बच्चे हैं जो दिन भर कूड़े–कचरे के ढेर से कुछ काम की चीजें ढूढ़ने में उसके साथ रहते हैं।
काफी देर तक भयभीत मन से बापू के घर आने का इंतजार किया, अंधेरा घिरने लगा, बच्चे वापस घर जाने को उतावले होने लगे।
अन्तत: उसने छोटा सा केक काटकर मोमबत्तियाँ बुझाने का रस्म अदा की। बच्चे तालियाँ बजाकर जन्मदिन पर बधाई देते नाचने लगे। उपहार में कोई गुब्बारा, कोई च्युंगम तो कोई कूड़े–ढेर से चुगने के लिए थैली लेकर आया था ।
इतने में धड़ाम से बाहर का दरवाजा खुला और एक बदबूदार हवा के झोंके के साथ बापू अन्दर आया।
‘‘अरे कालिया....क्या है यह सब....क्या खुराफात कर रहा है तू इन सब बच्चों के साथ...ऐं....?’’
‘‘बापू...!’’ वो अपने बापू के पैरों के साथ लिपट सा गया–‘‘बापू आज मेरा जन्मदिन है। आज माँ ने अच्छी खीर बनाई है, साथ बैठकर खाएँगे। मैं आपसे कुछ भी नहीं माँगूगा। बस, आज की रात मुझे व माँ को पीटना मत। मैं इसी को ही जन्मदिन का तोहफा समझूँगा...।’’
उसके हाथ से अधमरी बोतल छूटकर आँगन में गिर गई और उसने अपने बच्चे को उठाकर गले में लगा लिया।

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