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लघुकथाएँ - देश - रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
सपने और सपने

तीनों बच्चे रेत के घरौंदे बनाकर खेल रहे थे कि सेठ गणेशीलाल का बेटा बोला, ‘‘रात मुझे बहुत अच्छा सपना आया था।’’
‘‘हमको भी बताओ।’’ दोनों बच्चे जानने के लिए चहके।
उसने बताया, ‘‘मैं सपने में बहुत दूर घूमने गया; पहाड़ों और नदियों को पार करके।’’
नारायण बाबू का बेटा बोला, ‘‘मुझे और भी ज्यादा मजेदार सपना आया। मैंने सपने में बहुत तेज स्कूटर चलाया। सबको पीछे छोड़ दिया।’’
जोखू रिक्शेवाले के बेटे ने कहा, ‘‘तुम दोनों के सपने बिलकुल बेकार थे।’’
‘‘ऐसे ही बेकार कह रहे हो! पहले अपना सपना तो बताओ।’’ दोनों ने पूछा।
इस बात पर खुश हाकर वह बोला, ‘‘मैंने रात सपने में खूब डटकर खाना खाया। कई रोटियाँ खाईं, नमक और प्याज के साथ...पर....।’’
‘‘पर, पर क्या?’’ दोनों ने टोका।
‘‘मुझे अभी तक भूख लगी है।’’ कहकर वह रो पड़ा।

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