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लघुकथाएँ - देश - रमेश गौतम
बारात

बारात में सबसे पीछे चल रहा था पैट्रोमैक्स का भारी बोझ उठाए वह दस वर्षीय लड़का। अचानक नशे में घुत एक बाराती का जोरदार चांटा उसके गाल पर पड़ा, ‘‘साले, सबसे पीछे चल रहा है, मरियल कुत्ते की तरह। देखता नहीं कि हम यहाँ डांस कर रहे हैं।’’ ऊपर छज्जे पर खड़ी लड़कियों पर नजर डालते हुए वह चीखा।
‘‘बाबूजी, छोडि़ए, बच्चा है और भूखा भी!’’ पैट्रोमैक्स ढोते बूढ़े ने हस्तक्षेप किया।
‘‘तो हम क्या करें? साले चल देते हैं पिल्लो को लेकर जानता नहीं, यह एडवोकेट सिन्हा के बेटे की बारात है। शहर के नामी और सभ्य लोग इसमें बाराती हैं।’’ उसने एक बार फिर ऊपर की ओर देखते हुए सीना फुलाया। सबकी नजरें उधर ही थीं। बाराती मुस्करा रहे थे।
बूढ़े ने सभ्यों की भीड़ को भरपूर दृष्टि से देखा और बच्चे का गाल सहलाकर कहा, ‘‘चल बेटा, आगे बढ़!’’

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