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लघुकथाएँ - देश - रश्मि वार्ष्णेय‍
वृद्ध वट वृक्ष

चमन में चहल–पहल बढ़ती जा रही थी। छोटे–बड़े पेड़–पौधे सभी आने वाले वंसत का स्वागत करने के लिए बेताब थे। लताएं लहलहाती हुई कल्लोल कर रही थीं। दूब घास की मखमली चादर अंगड़ाई ले रही थी।
इन सबसे दूर वृद्ध वृक्ष एक कोने में विश्राम कर रहा था। अपनी जटाओं का सहारा लेकर जैसे–तैसे खड़ा था। उपेक्षित–सा जीवन यापन करता वह चमन की हलचल देख रहा था। उसे अपने बीते दिन रह–रह कर याद आ रहे थे। वह उस समय और इस समय की तुलना कर रहा था।
तभी धरती फटी। सभी ने सोचा कि चमन की खूबसूरती बढ़ाई के लिए मिट्ठी खोदी जा रही है। क्यारियां बनाई जा रही है,थाले बनाए जा रहे हैं।
लेकिन देखते ही देखते सब गिरने लगे, आड़े,तिरछे, औंधे, उल्टे। सब कुछ पुलट गया। मिट्टी पलटने में माहिर केंचुए भी हक्के–बक्के रह गए। भूमि का हर भाग अपनी जगह से हिल गया था। जड़ों को पांव जमाने के लिए अपने नीचे कहीं भी मिट्टी नहीं मिल पाई थी। धरती के शांत होने से पहले पूरा चमन शांत हो चुका था।
रह गया था तो बस वृद्ध वट वृक्ष, जो अपनी जटाओं को सहलाते हुए शांत खड़ा था। पहले की ही तरह निर्विकार। चहल–पहल के बाद की उथल–पुथल का मूक साक्षी।
वट वृ़क्ष के चारों ओर फैली जटाएं समय के साथ अपनी सुरक्षा–व्यवस्था निरंतर पुख्ता करते हुए धरती में काफी गहरे पैठ चुकी थीं। इन जटाओं के दायरे में आने वाली जमीन का चप्पा–चप्पा इनकी गिरफ्त में था। मिट्टी खिसकना तो दूर, वहां से धूल तक भी उड़ नहीं सकी थी।
जीवन के लंबे अनुभव ने बहुत पहले ही वृद्ध वटवृक्ष को ऊंची उड़ान भरने से पहले नीचे की थाह लेना सिखा दिया था। जटाओं ने वट वृक्ष के ऊपरी भाग के फैलाव के बराबर का आधार समय रहते तैयार कर दिया था।
भूकंप की तीव्रता के आगे विवश मिट्टी ने घुटने टेक कर अपना सीना चीर दिया था। फिर कुचालक लकड़ी की क्या बिसात। लेकिन वट वृक्ष के चौमुखी पल्लवन ने कंपनों की तीव्रता को छितरा कर उसका आधार खिसकने नहीं दिया था।
वट वृक्ष की छांव तले फलने–फूलने की गुंजाइश नहीं होती है। भूंकप की तीव्रता को भी अपना दम तोड़ देना पड़ा।

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