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लघुकथाएँ - देशान्तर - रेनॉएल्सबर्ग
कैथरीन के लिए

पहली बार जब मुझे छह वर्षीय खूबसूरत बच्ची की जांच करके दवा देने के लिए बुलाया गया, तो उसकी मां मुझे एक तरफ ले गई और बोली,‘‘कैथरीन बहुत शर्मीली है। वह नहीं चाहती कि कोई ऐसा आदमी उसे छुए भी, जिससे वह अपरिचित है।’’ उसने अपनी बात जारी रखी, ‘‘और आप देखते हें कि मेरी बच्ची अंधी है। वह अपनी उम्र के अन्य बच्चों से कुछ ज्यादा जिद्दी लगती है।’’
कैथरीन एक छोटे फरिश्ते की तरह लग रही थी। छोटे–छोटे नैन–नक्श घुँघराले,सुनहरे बाल। सब कुछ बहुत ही अच्छा लग रहा था।
मुझे यह बिल्कुल याद नहीं है कि उसका विश्वास जीतने में मुझे किस चीज से सहायता मिली थी और न ही मुझे यह याद है कि मैंने उसके गले की जांच की थीं, तब तक हम अच्छे मित्र बन गए थे। उसका स्वभाव भी अब लजीला नहीं रह गया था।
मैं अकसर बैठकर कैथरीन को कहानियां सुनाया करता। उसे अपनी आंखों से दुनिया दिखाने की कोशिश करता,लेकिन वह मुझे अपनी दुनिया में खींच ले जाती, जहां अंधेरा था और अंधेरे के सिवाय कुछ भी नहीं ।
मैं उसे इतना चाहने लगा कि जब तबीयत होती, मैं उसे देखने चला आता। एक दिन मैंने एक सुंदर गुडि़या खरीदकर कैथरीन को दी। गुडि़या को उसने अपनी बाहों में भर लिया। थोड़ी देर तक उसके बालों पर हाथ फेरती रही, फिर बोली, ‘‘इसके भी बाल मेरी ही तरह घुंधराले हैं, नाक और मुंह भी हमारी ही तरह है।’’
अचानक कैथरीन की अंगुलियां गुडि़या की आंखों पर पहुँच गई। बंद आंखों पर एक क्षण को वह झिझकी। लगा कि वह किसी ऐसे प्रश्न के बारे में सोच रही है, सहलाया और बुदबुदा उठी, ‘‘लेकिन भगवान इसे मेरी तरह अंधी भी मत बनाना।’’
उस समय खुशी इस बात की थी, कैथरीन मुझे नहीं देख सकती, क्योंकि मेरी आंखों में आंसू थे। ऐसे आंसू, जो किसी डॉक्टर की असमर्थता के प्रतीक थे।

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