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लघुकथाएँ - संचयन - सतीश राठी
जरूरतें

सुबह जब वह उठी तो दस बाई दस की वह छोटी–सी कोठरी एकाएक उसे बड़ी लगने लगी।
‘‘पानी पिओगे?’ पत्नी ने पूछा।
‘‘हाँ, दे दो।’’ वह बोला।
‘‘ माँ और पिताजी तो मंदिर गए हैं। दीपू–राजू बाहर खेल रहे हैं।’’ पानी का गिलास देत हुए कोठरी के शांत वातावरण का कारण पत्नी स्वयं बता गई।
पानी पीते–पीते उसके दिमाग में कोई विचार कौंधा तो वह पत्नी से बोला, ‘‘दीपू व राजू को भेजकर दूध व एक पैकिट सिगरेट मँगवा लेना। चाय–सिगरेट की जरूरत महसूस हो रही है।’’
पत्नी, पैसे व दूध का बर्तन लेकर बाहर गई। दीपू व राजू को भेजकर जैसे ही वह भीतर आई, उसने उठकर पत्नी को बाँहों में समेट लिया।
आकस्मिक रूप से मिल गए इस एकांत का वह पूर्ण उपभोग करना चाह रहा था। छोटी–सी कोठरी उसे महल–सी बड़ी लग रही थी।

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