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लघुकथाएँ - संचयन - सतीश राठी
हथियार

शहर में दंगा। हाथ के हथियार को घृणा और गुस्से के सम्मिलित बल से तानकर हिंदू ने मुस्लिम से कहा, ‘‘तुम सबसे पहले मेरे देश में घुसे, फिर मेरे शहर में अतिक्रमण ...और अब मेरे मोहल्ले में यह घुसपैठ!.....मैं......अब जिंदा नहीं छोड़ूँगा तुम्हें।’’
‘‘हाँ! माना मैं तुम्हारे देश, शहर और मोहल्ले में घुसपैठ कर रहने लगा। लेकिन दोस्त...मत भूलो कि मैंने तुम्हारे दिल में निवास किया है।’’ विश्वास से भरी अपनी आँखों को सामनेवाले की आँखों में डालते हुए निहत्थे मुस्लिम ने हिंदू से कहा।
हिंदू का हथियार हाथ से छूटकर गिर गया।

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