राजा की घोषणा राजभवन का विशाल मैदान राज्य के कलाकारों की श्रेष्ठ कलाकृतियों से सज गया। राजा निरीक्षण करने निकला। बहुत गहराई से वह एक–एक कलाकृति का निरीक्षण कर रहा था। यह क्रम कई दिनों तक चला, परंतु एक भी कलाकृति राजा के मन को नहीं छू सकी। उसे बहुत निराशा हुई।
राजा का दरबार लगा था। सभी कलाकार उपस्थित थे। राजा ने कलाकारों को संबोधित किया, ‘‘.......देश के महान् कलाकारो, मुझे दुख है कि आपमें से किसी की कलाकृति मेरे हृदय को नहीं छू सकी। किसी कलाकृति ने मुझे बेचैन नहीं किया, जिसे बड़ी राशि से खरीदकर उस कलाकार को पुरस्कृत....’’
राजा का वाक्य पूरा भी नहीं हुआ कि एक भारी आवाज आई थी। सबकी आँखों में उत्सुकता के भाव थे। राजा भी उसी ओर देख रहा था। उसके चेहरे पर उत्सुकता और तमतमाहट स्पष्ट झलक रही थी।
उलझे बाल! गंदे, अस्त–व्यस्त कपड़े !खिचड़ी–खूंटीदार दाढ़ी! प्रौढ़ व्यक्ति! डसने आते ही राजा को संबोधित किया, ‘‘....राजन् आपकी घोषणा क्या है....?’’ उसका यह प्रश्न सुनकर सभी उपस्थित लोग हंस पड़े, ‘‘.....हूं...ह! यह पागल तो नहीं? इसे घोषणा का पता भी नहीं है?’’ उपस्थित भीड़ में फुसफुसाहट होने लगी।
राजा को भी उसका यह सवाल बहुत अटपटा लगा। पहले उसे लगा था कि यह कोई कलाकार होगा,कुछ प्रदर्शित करना चाह रहा होगा। खैर, उन्होंने अपनी घोषणा सुना दी, ‘‘....मेरी घोषणा थी कि मैं अपने राज्य के सर्वश्रेष्ठ कलाकार की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति को भारी राशि से खरीदकर राजकीय स्तर पर उस कलाकार को पुरस्कृत.....’’
वाक्य पूरा भी नहीं हुआ कि वह ठहाका लगाकर हंसने लगा। हंसता गया...हंसता गया....हंसता गया! उसका अट्टहास गूंजता रहा। उसके अट्टहास में राजा के शब्द डूब गए। राजा को उसकी यह हरकत बहुत अपमानजनक लगी। उनके चेहरे पर क्रोध के भाव तैरने लगे, परंतु उसका बुलंद अट्टहास अबाध गूँजता रहा। अट्टहास की बुलंदी ने राजा को पसोपेश में डाल दिया। एक झटके में उन्होंने क्रोध के सारे भाव पोंछ डाले, अब उनके चेहरे पर चिंतन की रेखाएं गहराने लगीं। अट्टहास गूंजता ही रहा, अनवरत!
अट्टहास से सारा मैदान गूंज रहा था। सभी सकते में थे कि राजा उस अधपगले व्यक्ति के चरणों पर गिर गए। सभी भौचक्क! राजा के चेहरे पर अब पश्चात्ताप की रेखाएं घनीभूत हो उठी थीं।
सभा में सन्नाटा था।