नेताजी के प्रस्ताव पर भीमकाय दुर्जनसिंह को तनिक भी विश्वास नहीं हुआ। प्रतिवाद के बदले में उसने कुरेदा, ‘‘...नेताजी!.....आज आप यह कैसी बातें कर रहे है ....! आखिर सुरेशनाथ आपका सगा भाई है.....और उसके बावजूद एकदम भोला–भाला, सीधा–साधा नेकदिल आदमी!...भला उसे मैं कैसे....’’
नेताजी के चेहरे पर कठोरता व कुटिलता से पैदा विषैले भाव फैल गए। भेद–भरी दृष्टि से आँखें तरेरते हुए उन्होंने बताया, ‘‘...यही तो मजे की बात है कि वह मेरा सगा भाई है, और एकदम भोला–भाला,सीधा–साधा नेकदिल इंसान...!...तुम उसका काम तमाम कर दो....पहले तो मैं ही आठ–आठ आंसू बहाऊँगा, रिपोर्ट छपवाऊँगा, प्रदर्शन निकलवाऊँगा....इल्जाम सत्तारूढ़ पार्टी पर लगाऊ...!....इससे मुझे लोगों की अपरिमित सहानुभूति मिलेगी...विपक्ष में मेरी छवि निखरेगी...और भगवान् ने चाहा तो अगली बार मुझे मंत्री–पद।’’ और एडवांस के रूप में नोटों की कुछ गड्डियाँ उन्होंने मूंछोंवाले दुर्जनसिंह कीओर बढ़ा दीं।