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हराम का खाना

चमरू की नवोढ़ा पतोहू गोइठे की टोकरी माथे पर लिए सामनेवाली सड़क से जा रही थी। रघु बाबू पर पत्नी के साथ खड़े बतिया रहे थे। उसे देखकर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘.....देखो, मैंने कहा था न कि इन छोटे लोगों की बहुओं को कोई क्या देखने जाए! वह तो खुद दो–चार दिनों में गोइठा चुनने, पानी भरने निकलेगी ही....!’’
यह बात चमरू की पतोहू ने सुन ली। बात उसे लग गई। बोली, ‘‘....हां, बाबूजी, हम लोग हराम का तो खाते नहीं हैं कि महावर लगाकर घर में बैठी रहूं। काम करने पर ही तो पेट भरेगा!’’ चमरू की पतोहू ने रघु बाबू को सुनाकर कहा और पूरे विश्वास के साथ आगे बढ़ गई।
रघु बाबू खिसियाते–से उसे आते देखते रह गए।

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