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सुकेश साहनी
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रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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राजनीतिज्ञ

आत्मसमर्पण के बाद वह राजनीति में आए। इत्तफाक से उसी वर्ष चुनाव भी छिड़ा। उनकी भारी बहुमत से विजय हुई। कुछ समय के बाद वह ‘मंत्री’ भी बन बैठे। एक दिन इंज्वायमेंट के अंतरंग क्षणों में ‘फाइव स्टार होटल’ की एक प्रेमिका ने उनसे पूछ लिया, ‘‘.....क्या आपने राजनीति में आने के लिए ही आत्मसमर्पण किया था?’’
‘‘..........ही....ही....ही.......ही....!....बिलकुल.....!’’ नुकीली मूंछों के नीचे और लाल–लाल आंखों में मुस्कान–सी उभर आईं
‘‘.....डियर, पूछ सकती हूँ, आखिर क्यों?’’ सुंदरी ने बहुत साहस बटोरकर पूछा। चेहरे पर कृत्रिम मुस्कान की चेष्टा के भाव थे।
‘‘ही...हीं...!......दरअसल।’’ स्वर में लड़खड़ाहट–सी थी और आंखों में नशा, ‘‘......प्लेन पर उड़ते हुए, बड़ी–बड़ी फैक्टरियों या कॉलेजों के उद्घाटन–भाषण करते हुए, फाइव स्टार होटल में इस तरह ‘इंज्वाय’ करते हुए.....और तो और, बड़े–बड़े साहित्यकारों–पत्रकारों में पुरस्कार वितरित करते हुए जब ‘वह पसारा कुछ’ इतनी इज्जत के साथ किया जा सकता है....तो फिर जंगलों–बीहड़ों में लुक–छिपकर जीने से क्या लाभ...?’’ और हलकी नीली रोशनी से नहाया व उत्तेजक विदेशी धुन पर थिरकता वह कमरा दोनों की खिलखिलाहटों से गूंज उठा।

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