छोटू ने वह रुपया कपड़े की लीर में कसकर बाँधा और छत पर बने हुए टट्टीखाने के दरवाजे की बगल में बने खड्डे में रखकर ऊपर से ईंट का अद्धा फँसा दिया।
अब वह होली के आने का बेसब्री से इन्तजार करने लगा था, क्योंकि मामा ने उसे गाँव ले चलने के लिए कह रखा था।
लल्ली के लिए जब मैं मोतियों वाला गले का हार लेकर जाऊँगा तो वह कितनी खुश होगी! कहेगी–तू मेरा कितना अच्छा भाई है। मेरा वश चले तो प्यारी छोटी बहनिया के लिए ढेर–सी चीजें लेकर जाऊँ...
क्या फायदा! काम मैं करता हूँ, तनख्वाह मामा लेकर सीधा गाँव मनीआर्डर कर देता है। मामा ने ही तो पैंतालीस रुपए और रोटी पर यहाँ रखवाया था। अपनी कमाई मैं खुद खर्च नहीं कर सकता। पैसे माँगता हूँ तो मामा मारता हैं मालकिन भी तो मामा के ही हाथ पर मेरा पैसा रखती है....
उस दिन मालकिन ने ही उसे पड़ोसवाली मिसेज गुप्ता के यहाँ कुछ संदेश देने के लिए भेजा था। मिसेज गुप्ता ने उसे बाजार से कोई चीज़ लाने के लिए भेज दिया। उनका अपना नौकर छुट्टी पर गया हुआ होगा। छोटू बाजार से लौटकर आया तो उसमें से जो एक रुपया बचा, वह मिसेज गुप्ता ने छोटू को ही इनाम में दे दिया और कहा कि कोई चीज खा लेना...रख लो।
छोटू उस रुपए को मालकिन से बचाकर रखना चाहता था। मालकिन को पता चला तो वह छोड़ देगी क्या? फट से छीन लेगी। लेकिन कहाँ पर छुपाकर रखा जाए? छोटी–सी टूटी–फूटी संदूककची है, उसमें भी लगाने के लिए ताला है नहीं....टट्टीखाने में ठीक रहेगा...।
छोटू उस रुपए को छिपाकर निश्चिन्त था और अपनी छोटी बहन के प्यारे ख्यालों में बार–बार उतराता हुआ उड़ रहा था। उस दिन वह टट्टीखाने में घुसकर अपना रुपया सुरक्षित है, कि नहीं, देख रहा था कि मालकिन को शक पड़ गया। उसने छोटू को रुपया छुपाते हुए धर पकड़ा और लगी पीटने–‘‘कमीने! चोरी करता है?’’ छोटू अपनी सफाई देता रहा कि मुझे तो इनाम में मिला है, पर मालकिन उस पर अंधाधुंध झाड़ू चलाती रही। छोटू के जगह–जगह जख्म हो गए तो मालकिन ने समझा कि अब इसे सबक मिल गया होगा।
शाम को वह उसी झाड़ू से कोठी की सफाई करते–करते लल्ली की याद करता हुआ रो रहा था कि पड़ोसवाली मिसेज गुप्ता ने उसे आवाज देकर बुलाया और कहा–‘‘बाजार जाकर ये चीजें ला दो....मैं तुझे आज एक की जगह दो रुपए इनाम में दूँगी।’’
‘‘मैं नहीं जाता.....मेरी बहन लल्ली ऐसे हारों की भूखी नहीं है। मर नहीं जाएँगे हम। मुझे नहीं चाहिए....ऐसा इनाम।’’