गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
लघुकथाएँ - संचयन -कमल चोपड़ा
छोनू
रोजी –रोटी की चिंता को लिए हुए वह घर से निकला ही था कि दंगाई–दरिंदों ने उसे घेर लिया। लाठियों की तड़ातड़ मार में वह खून, मांस और हड्डियों का ढेर बनता जा रहा था। हैवानियत और दरिंदगी के ठहाके जोर पकड़ रहे थे।
मांस और हड्डियों के खून–सने लोथड़े से भीड़ में हलचल रुक गई, ‘‘हा–हा हा! हा–हा–हा मर गया। हा–हा–हा....!
अचानक उस सरदार का छोटा–सा लड़का कहीं से दौड़ता हुआ आया, ‘‘कों माल ले ओ मेले डेदी तो...?’’
हैवानियत और दरिंदगी हँसने लगी–‘‘मारो इस साले को भी....ये भी साला सिक्ख का बीज है।’’
‘‘मैं छिक्ख–छुक्ख नई ऊँ...मैं बीज–ऊज नईं ऊँ....मैं तो छोनू ऊँ...।’’

*******

 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above