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लघुकथाएँ - संचयन - पृथ्वीराज अरोड़ा
कील

सड़क के बीच एक कील पड़ी है।
तेज़ी के साथ एक युवक साइकिल पर आया। उसकी निगाह कील पर पड़ी। झटपट हैंडल घुमाकर वह अपनी मुस्तैदी पर मुस्कराया कि उसने साइकिल का टायर पंचर होने से बचा लिया है।
घिसे हुए जूते में कोई चीज चुभी है। बूढ़े ने गर्दन झुकाकर नीचे की ओर देखा–एक कील है। मुँह बिचकाकर वह आगे निकल गया।
फिर आगे–पीछे दौड़ते हुए दो लड़के आए। आगेवाले लड़के ने उछलकर अपने पाँव को छलनी होने से बचा लिया। दूसरे ने पूछा, ‘उछले क्यों?’’ पहले वाले ने कील की ओर इशारा कर दिया। साथ ही जख्मी होने से बच जाने की खुशी में किलकारी भर दी। दूसरा भी उसकी होशियारी पर खुश हो गया।
कील अब भी सड़क पर पड़ी है।

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