गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
लघुकथाएँ - संचयन - कमलेश भारतीय
इस बार
इधर बच्चों के इम्तहान शुरू होते उधर नानाजी के खत आने शुरू हो जाते–इम्तहान खत्म होते ही बच्चों को माँ के साथ भेज देना–फौरन। यह हमारा हुक्म है। साल भर बाद तो पढ़ाई को बोझ उतरता है। मौज मस्ती कर लेंगे। हम भी इसी बहाने तुम लोगों से मिल लेंगे।
पिछले कई सालों से यह लगभग तयशुदा कार्यक्रम था जिसमें उलट फेर करने की हमारी न इच्छा थी, न हिम्मत पड़ती थी । बच्चे भी इम्तहान खत्म होते–होते ‘नानके घर जा।वाँगे’ की रट लगाने लगते। बीच–बीच में उन्हें नाना–नानी का प्यार–दुलार, मामा–मामी का सैर–सपाटा कराना याद आ जाता। वे और उतावले हो उठते। इस बार इम्तहान शुरू होने की जैसे किसी को खबर ही न हुई, कोई चिट्ठी- पत्री नहीं। पत्नी रोज़ रात को पूछे–दफ्तर के पते पर कोई चिट्ठी नहीं आई?
आखिर चिट्ठी आई, लिखा था- इस बार आप लोगों को बुलाना चाहकर भी बुला नही पाएँगे। हालात खराब हैं। गोली–सिक्का बहुत बरस रहा है। पता नहीं कब, कहाँ, क्या हो जाए। हवा भी दरवाजे पर दस्तक देती है तो मन में बुरे ख्याल आने लगते हैं। आप जहाँ हैं, वहीं खुश रहो, सुखी रहो। हमारी बात का बुरा मत मानना। कौन माँ–बाप अपनी बेटी से मिलना न चाहेगा? पर इस बार....अपने ही घर छुट्टियाँ मनाना। बच्चों को प्यार....अपनी राजी खुशी की चिट्ठी लिखते रहो करो।

*******

 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above