‘‘आज गाँधी जयंती है बेटा। आज के दिन हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का जन्म हुआ था। वह अहिंसा के पुजारी थे। उनका कहना था कि सदा सच बोलो।’’ कचहरी के बाबू खूबचन्दजी ने बेटे को नाश्ते की मेज पर बताया।
तभी रग्घू की माँ नाश्ता तैयार कर मेज पर रख गई। नाश्ते में उबले अंडे भी थे। छीलते समय आखिरी दो अंडे खराब निकले।
बाबू खूबचंद जी के चेहरे पर बल पड़ गए। कुछ सोचने के बाद सहसा उनके चेहरे पर चमक आई और उन्होंने बेटे को आदेश दिया, ‘‘जा रे रग्घू, फौरन दौड़कर पास वाले नुक्कड़ की दुकान से छह अंडे खरीद ला। दुकानदार से यह भी कहते आना कि अगर कोई अण्डा सड़ा हुआ निकला तो बदलना पड़ेगा।’’
‘‘ऐसा क्यों पिताजी?....फिर नुक्कड़ वाली दुकान से तो हम लोग कभी भी अंडे नहीं खरीदते। आप ही तो शहर की थोक वाली अंडों की दुकान से अंडे लाने पर जोर देते हैं, क्योंकि वहाँ अंडे सस्ते मिलते हैं।’’ बेटा रग्घू बोला।
‘‘अरे बेवकूफ, थोड़ा चुप भी रहा कर। हर समय बोलता ही रहता है।’’ बाबू खूबचंद जी गुर्राए, ‘‘नुक्कड़ से अंडे लाने में देर तो नहीं लगेगी न! फिर तू दुकारदार से यह तय करके आएगा ही कि खराब अंडे लौटाने पड़ेंगे। बस.....फिर थोड़ी देर बाद मेज पर रखे ये दो खराब अंडे पास ले जाकर यह कहना कि अभी जो अंडे खरीदकर ले गया था, उसमें से ही ये दो अंडे खराब निकले हैं।.....अब भी समझा या नहीं!’’
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