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लघुकथाएँ - संचयन - गंभीरसिंह पालनी
नयी हवा
आज रक्षाबंधन था। रमेश के घर पड़ोस की लड़की मीनाक्षी राखी लेकर आई।
रमेश की भी नई–नई नौकरी लगी थी। उसने तुरंत बीस का नोट निकाला और मीनाक्षी को थमा दिया। मीनाक्षी ने भी ना–नुकुर करने का काफी अच्छा अभिनय किया और फिर वह नोट ले ही लिया।
घर में पहुँचते ही मीनाक्षी ने अपनी छोटी बहन लता से कहा, ‘‘देखा कैसा मूंडा है आज मैंने रमेश को। इतने महीने हो गए थे इसकी नौकरी लगे, न तो इसने मिठाई खिलाई थी और न पिक्चर दिखाई थी। आज आ ही गया। बच्चू कब्जे में।’’
उधर रमेश सोच रहा था, ‘‘ये मीनाक्षी तो आज राखी बाँधने चली आई। जब आ ही गई थी तो मना भी कैसे करता। कुछ दिनों से इसके साथ ‘चक्कर चलाने’ की सोच रहा था। शरूआत करने ही वाला था। चलो, अब यह न सही, इससे एक साल छोटी इसकी बहन लता से ही ‘चक्कर’ चलाऊँगा। अब मीनाक्षी से राखी बंधवा ली है तो बेरोकटोक इनके घर–आ जा सकता हूँ, जिससे लता से मिलने में भी कोई बाधा सामने नहीं आएगी।’’
शाम को रमेश अनी नई बहन मीनाक्षी के साथ फिल्म देखने शहर जा रहा था। साथ में लता भी थी।
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