गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
लघुकथाएँ - संचयन - गंभीरसिंह पालनी
फीस
अचानक ही मेरी नजर ‘डेली वेजेज’ पर बैंक में काम कर रहे चपरासी कनवाल पर पड़ी। देखा–वह स्टूल पर बैठा अंग्रेजी अखबार बड़ी तन्मयता से पढ़ रहा है। समसायायिक घटनाओं को पढ़ने के बाद कई तरह के भाव उसके चेहरे पर आ–जा रहे हैं।
कनवाल और अंग्रेजी का अखबार। मुझे आश्चर्य हुआ। यह लंच टाइम था और इस समय बैंक में अन्य कोई मौजूद नहीं था। मैंने कनवाल को अपने पास बुलाया और कहा।
‘‘क्यों कनवाल, अखबार तो बड़ी तन्मयता से पढ़ रहे हो। ऐसा लगता है कि तुम्हें अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान है। कहाँ तक पढ़े हो?’’
वह कहने लगा, ‘‘साहब मैं तो नवीं फेल हूँ।’’
मैंने कहा, ‘‘सच–सच बताओ। मुझसे तो झूठ न बोलो। जिस तन्मयता से तुम अंग्रेजी का अखबार पढ़ रहे हो, उससे तो नहीं लगता है कि तुम सिर्फ़ नवीं तक पढ़े हो।’’
वह सकपका गया और बोला, ‘‘नहीं साहब, गलती हो गई। अब से नहीं पढ़ूँगा अंग्रेजी का अखबार। हिन्दी का ही पढ़ूँगा। वैसे मैं नवीं फेल हूँ।’’
मैंने उसे धमकाया, ‘‘सच–सच बताओ वरना कल से हम ‘डेली वेजेज’ पर दूसरा चपरासी रख लेंगे।’’
इस पर वह बोला, ‘‘नहीं साहब, नहीं। ऐसा न कीजिएगा साहब। मैं सच–सच बता देता हूँ। वैसे तो मैं बी0ए0 पास हूँ। मगर मैनेजर साहब ने कहा था कि अगर कोई पूछे तो नवीं फेल ही बताना। चूँकि इससे ज्यादा पढ़े–लिखे को नियमानुसार डेली वेजेज पर बैंक में चपरासी नहीं रखा जा सकता। अब मेरी असली योग्यता जानने के बाद यदि आप लोगों ने मुझे इस काम से हटवा दिया तो मैं बड़ी नौकरी के कम्पटीशन में बैठने के लिए फीस की राशि कहाँ से जुटा पाऊँगा साहब?’’
*******
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above