सुरेश एक कुशाग्र बुद्धि का परिश्रमी विद्यार्थी था। जब वह पहले दिन दसवीं की परीक्षा देकर आया तो उखड़ा–उखड़ा सा लग रहा था। पहले वह रात के बारह बजे तक पढ़ता था, उस दिन दस बजे ही सो गया। उसके पिता को यह अच्छा नहीं लगा, लेकिन उन्होंने उसे कुछ नहीं कहा।
पर दूसरी शाम को परीक्षा के बाद उसे घर के पासवाले मैदान में पतंग उड़ाते देख उसके पिता को बड़ा अचम्भा हुआ। वे उसके पास जाकर बोले, ‘‘सुरेश, तुम्हें पता है, कल तुम्हारी गणित की परीक्षा है?’’
‘‘हाँ पता है।’’ उसने सहजभाव से कहा।
‘‘फिर भी तुम पतंग उड़ा रहे हो?’’
‘‘और क्या करूँ?’’
‘‘क्यों, पढ़ाई नहीं करनी?’’
‘‘क्या करूँगा पढ़ाई करके? परीक्षा–भवन में सब प्रश्नों के उत्तर तो हर रोज ब्लैक बोर्ड पर लिख दिए जाते हैं।’’ यह कहकर उसने अपने भीतर की निराश को तीव्रता से उँड़ेल दिया।
आकाश में पतंग हिचकोले खाने लगी थी।
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