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दो और दो

बहुत बड़ी कुर्सी को एक विश्वास पात्र अधिकारी की ज़रूरत थी। अधिकारी को एक विशेष जगह पर तैनात किया जाना था। ऐसा करने से कुर्सी का मान भी बढ़ता और शान भी। काले को सफेद और सफेद को काला करने की मनचाही छूट तो साथ में जुड़ी ही रहती है। परन्तु असली समस्या यो यह थी अधिकारियों की भीड़ में से विश्वास पात्र अधिकारी का चुनाव कैसे हो? इसके लिए कुर्सी ने उपलब्ध आँकड़ों और गोपनीय सूचनाओं का उपयोग किया। इस आधार पर दो सुयोग्य अधिकारियों के नाम उभर कर आगे आए।
कुर्सी ने बारी–बारी से उन दोनेां को अपने पास बुलाया। पहले के सामने आते ही पूछा, ‘दो और दो?’
‘पूरे चार, सर, न जरा–सा कम और न जरा–सा अधिक।’ अधिकारी ने तपाक से उत्तर दिया।
‘शाबाश! बहुत ही सावधान और सुयोग्य अधिकारी हो तुम।’ कुर्सी ने मुस्कुरा कर उसकी पीठ थपथपाई।
तुरन्त बाद दूसरा अधिकारी सामने आया। उससे भी वही सवाल पूछा गया, ‘दो और दो?’
‘जितने आप कहें, सर, ठीक उतने ही।’ अधिकारी ने गर्दन झुकाते हुए उत्तर दिया।
उस विशेष जगह पर दूसरे अधिकारी को नियुक्त कर दिया गया।


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