गहराती हुई रात। राजमार्ग के किनारे का ढाबा। एक मेज के गिर्द बैठे हुए तीन युवक। बीच में रखी हुई शराब की बोतल और महक छोड़ती मीठ की एक बड़ी प्लेट। तीनों नशे में थे और ‘औरत’ को लेकर बातें कर रहे थे।
‘औरत एक फूल है!’ पहले ने कका। आजकल वह एक औरत के प्यार में डूबा हुआ था।
‘औरत एक नशा है!’ दूसरे ने कहा। उसकी अभी–अभी मनपसन्द लड़की से शादी हुई थी।
‘औरत एक खूबसूरत धोखा है!’ तीसरे ने कहा और पिच्च से वहीं पर थूक दिया। उसने प्यार में ताजा–ताजा धोखा खाया था।
तीनों अपनी–अपनी बात पर अड़ गए। तभी खाना खाकर एक व्यक्ति उनकी मेज के पास से गुजरने लगा। तो उनमें से एक ने उसे आवाज़ देकर अपने पास बुलाया। तीनों ने अपनी–अपनी बात उसके सामने रखी और उससे पूछा कि उनमें से किस की बात सही है।
वह व्यक्ति उनके झगड़े में नहीं पड़ना चाहता था। बोला, ‘तुम तीनों अपनी अपनी जगह सही हो। लेकिन यह क्यों भूल गए कि औरत सबसे पहले एक माँ है, माँ!माँ, जो हमें जन्म देती है, पाल–पोसकर बड़ा बनाती है!’
व्यक्ति की बात सुनकर तीनों ने एक दूसरे की ओर देखा और एक साथ बोले, ‘माँ!’ अब वे तीनों वहीं बैठे रो रहे थे।
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