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सूरजमुखी

उसे बन्दूक बहुत अच्छी लगती थी। इतनी अच्छी कि एक दिन उसने अपने खेत में बंदूक बो दी। ताकि उसके पास प्यारी–प्यारी बन्दूकें हों। और हुआ भी यही। उसके खेत में बन्दूकें उग आईं छोटी–बड़ी, रंगबिरंगी। परन्तु आश्चर्य की बात तो यह थी कि उन सभी बन्दूकों का मुँह उसकी ओर ही था। पहले तो उसे यह अपने मन का भ्रम लगा। पर बाद में उसने पाया कि वह जिधर भी मुँह घुमाता है बन्दूकों का मुँह भी उसकी ओर ही घूम जाता है। जब उसने ध्यान से बन्दूकों के मुँह की ओर देखा तो लगा जैसे वे अपने पेट में समाई सारी गोलियों को उसकी छाती में उतारने को बेचैन हैं। अपने प्राण बचाने के लिए वह भाग खड़ा हुआ।
तभी उसके सगे भाई ने उसे आवाज़ देकर अपने पास बुलाया। उसके भाई का खेत उसके खेत के साथ ही था। वह उधर मुड़ा तो उसने पाया कि उसके भाई के खेत में सूरजमुखी के फूल खिले हुए हैं, मुस्कानों के सूरजमुखी। वे सूरजमुखी उसके भाई के मुँह की ओर ही ताक रहे थे मानों वह सूरज हो। वह दौड़ कर अपने भाई के पास पहुँच गया। पहुँचते ही उसने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि वह बन्दूकों की नलियों की जगह मुस्कान के सूरजमुखियों से घिरा हुआ है। अब वह भय -मुक्त था। उसे तो मालूम ही नहीं था कि उसे भाई ने अपने खेत में मुस्कानों के सूरजमुखी बोए हैं। तब उसे बड़े–बूढ़ों द्वारा कही बात याद आई कि धरती (खेत) अपने में डाला गया बीज हर हाल में लौटाती है।


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