‘अभिव्यक्ति एक्सप्रेस ‘के दफ्तर में अचानक सन्नाटा पसर गया। ब्यूरो से लेकर डेस्क तक सबके चेहरे पर मातम छाया था। इंक्रीमेंट को लेकर पिछले कई महीने से मामला अटका हुआ था और आज चीफ एडिटर ने सबके सामने दो टूक शब्दों में मैनेजमेंट का फैसला सुना दिया कि इस साल किसी का इक्रीमेंट नहीं मिलेगा। सब सन्न रह गए। यह बात उन लोगों के लिए सदमें जैसी थी, जिनका पिछले साल भी एक पैसा नहीं बढ़ा था। लेकिन किसी ने कुछ नहीं कहा। किसी को कुछ कहने का मौका भी नहीं दिया गया।
सन्नाटा कायम रहा, लेकिन बहुत देर तक नहीं। कशमशाहटों के साथ की–बोर्ड पर उंगलियाँ टकराने लगीं। टैलिप्रिंटर किरकिराने लगे। पन्ने फड़फड़ाने लगे। खबरें बनने लगीं। हेडिंग गढ़े जाने लगे। बांग्लादेश में इमरजेंसी, सूलगता सोमालिया, अल्पसंख्यकों के साथ अन्याय, मानवाधिकार खतरे में, बेघर हुए आदिवासी बेरोजगारों पर फायरिंग, मुआवजे में देरी, करोड़ों का घोटाला, लाखों की धोखाधड़ी, साजिश का पर्दाफाश।
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