त्योहारी सीजन होने के कारण ट्रेन में कुछ ज्यादा ही भीड़ थी। सेकेंड क्लास स्लीपर का डब्बा वेटिंग टिकट वालों से भरा था। कुछ लोग जनरल टिकट के साथ भी कोच में घुस आए थे टीटीई के घुसते ही डब्बे में सन्नाटा छा गया। उसके साथ दो बंदूकधारी पुलिसकर्मी भी थे। उसने लोवर बर्थों के बीच में लुंगी बिछाकर सोए एक आदमी से टिकट माँगा,टीटीई ने पैड निकाला और फाइन का हिसाब लगाने लगा। इस बीच, पुलिसवाले यात्री को घूरते रहे। टीटीई ने कहा, तो भई 750 प्लस 150, कुल मिलाकर 900 रुपए। यात्री ने दबे मन से विरोध किया, लेकिन साहब इतना तो नहीं बनता। अधिकारी के तेवर बदले, इधर आ तूझे समझाता हूँ। एक एक बर्थ पर बैठ गया और एक चार्ट निकालकर उसे समझाना शुरू किया। लेकिन यात्री की निगाहें चार्ट पर न टिककर, कभी पुलिसवालों पर तो कभी अपनी जेब पर आ टिकतीं। मानों वह कहना चाहता हो कि सर इतने पैसे मेरे पास नहीं हैं, लेकिन तलाशी के डर से चुप हो गया। फिर बोला, सर कुछ कम कर दीजिए। एक सिपाही ने डाँटा, अबे, साहब क्या अपने लिए माँग रहे हैं, रसीद ले लेना। फिर टीटीई ने कहा, भई जल्दी करो, फाइन दो या...। इतना कह वह अन्य यात्रियों के टिकट चेक करने लगा। इस बीच, दूसरे सिपाही ने काँपते यात्री के कान में कुछ कहा। यात्री ने जेब से तीन सौ रुपए निकाले और टीटीई की ओर बढ़ा दिया। टीटीई ने बिना उसकी तरफ देखे ही नोटों के लिए हाथ बढ़ा दिया और बिना गिने ही जेब में रख लिये। फिर बोला, अगले स्टेशन पर ट्रेन रुकते ही, जनरल बोगी में चले जाना। इस बीच दोनों सिपाहियों ने दो–चार और शिकार ढूँढ निकाले और उनसे भी कुछ रुपए उगलवा लिये। एक यात्री ने रसीद लेकर फुलपेमंट करने की बात कही, तो उसे तीनों ने ऐसे देखा मानों उसने उनके स्वाभिमान को चुनौती दे दी हो। फिर टीटी ने उस यात्री को जोड़–भाग में ऐसा उलझाया कि उसकी जेब चरमरा उठी और वह भी कुछ ले–देकर की बात पर उतर आया।
अगले जंक्शन पर ट्रेन रुकते ही मैं कुछ खाने–पीने के लिए उतरा और एक स्टॉल पर पहुँचा। वहाँ देखा कि वह टीटीई दोनों सिपाहियों को सौ–सौ का नोट थमा रहा है। सिपाहियों के जाते ही स्टॉल मालिक ने टीटीई से मजाकिया लहजे में पूछा, क्यों पांडेजी आजकल बॉडीगार्ड लेकर चलने लगे हैं क्या? टीटीई ने कहा, अरे नहीं भाई। साथ में ले लेता हूँ थोड़ी सुविधा होती है। वैसे भी शराफत का जमाना नहीं रहा। लोग एक तो चोरी करते हैं, ऊपर से सीनाजोरी।
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