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तीर्थ

‘‘बेटा, तुझे तनख्वाह मिल गई?’’
‘‘हाँ माँ....पर तुम यह क्यों पूछ रही हो?’’
‘‘सोच रही हूँ, इस बार तीर्थ कर आऊँ....।’’
‘‘नहीं माँ, इधर मेरा हाथ बहुत तंग है...मुझे अभी एन.एस.सी भी लेना है, बीमा और रेकरिंग की किश्त भी भरनी है....फिर पूरा महीना भी बाकी है...।’’ माँ को जवाब देकर वह आगे बढ़ा कि तभी ‘‘सुनिए....’’
‘‘यस डार्लिंग....’’
‘‘आपको सैलरी मिल गई न....?’’
‘‘हाँ, क्यों....?’’
‘‘बहुत दिनों से मेरी मुम्बई जाने की इच्छा हो रही थी, तो सोचा क्यों न इसी महीने चलें...।’’
‘‘अरे वाह! तुमने तो मेरे मन की बात कह दी...। ऐसा करेंगे, वहीं से शिरडी भी चले चलेंगे....।’’
‘‘यानी मौज–मस्ती के साथ तीर्थ भी....।’’
‘‘और नहीं क्या डार्लिंग.....मैंने तो पहले ही सोच रखा था, इस महीने अपनी एल.एफ़ .सी (लीव फेयर कन्सेशन) भी तो लैप्स हो जाएगी, सो उसका भी उपयोग हो जाएगा....।’’
‘‘सच ...! आप कितने अच्छे हैं...।’’
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