‘‘ऐ चणादास मोठमल, क्या हाल है तेरा?’’ यह कहकर मैंने अपने बालसखा के कंधे पर थाप लगाई।
‘‘अरे जज साब आप!....बहुत दिनों से पधारे।’’ अचानक मुझे देख उसकी बीमार आँखों में चमक आ गई।
‘‘फिर वही जज साहब की रट....भगवाना, तू नहीं सुधरेगा।’’ मैंने उसकी दुकान पर ताजी सिकी मंूगफली के कुछ दाने मुँह में डालते हुए उसे मीठी–सी डांट लगाई।
‘‘कहाँ आपन इत्ते बड़े जज और कहाँ मैं एक मामूली भड़भूंजा।’’ वह फिर भी धनुष की तरह झुका हुआ अपनी औकात से चिपका ही रहा।
‘‘एक बात सुन यार, जितनी बढि़या मूंगफली तू सेंकता है न, शायद उतना बढि़या मैं फैसला नहीं लिखा पाता रे।’’ मैंने उसके गाल पर एक प्रेम–भरी चपत लगाई और वहाँ से खिसक पड़ा।
कुछ दूरी से मैंने उसे मुड़कर देखा तो वह अभी भी भीगी पलकों के साथ खड़ा मेरी अपलक देख रहा था।