बेटे की बारात धूमधाम से सजी थी। बैंड बाजे की फास्ट धुन पर दूल्हे के मित्र व परिजन खूब उत्साह–उमंग से नाच रहे थे। बैंड मास्टर अपने काम से ज्यादा वहाँ न्योछावर हो रहे नोट लपकने में लगा था। दूल्हे के चाचा ने खुशी के मारे जोश में आकर पचास के कड़क नोटों की पूरी गड्डी ही उछाल दी थी। नोट हथियाने के लिए बैंड पार्टी,घोड़ी वाले और ढोल वालों में आपाधापी मच रही थी।
उधर गैस बत्ती के भारी लैम्प सिर पर ढोए ठंड में सिकुड़ रही क्षीणकाय लड़कियाँ मन मसोसे यह सब देख रही थी। उनके चेहरों पर इस अवसर से वंचित रहने का दुख और मायूसी की छाया साफ दिखाई दे रही थी। उनकी यह दशा देखकर दूल्हे के पिता का मन करुणा से भर गया। उसने सौ–सौ के कुछ नोट बेटे पर न्योछावर करके रोशनी ढो रही प्रत्येक लड़की को दो–दो की संख्या में थमा दिए।
इस अप्रत्याशित खुशी से दमकते उन लड़कियों के चेहरों से वहाँ फैली रोशनी कई गुना बढ़ गई थी।