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रांग नंबर

‘‘पापा प्लीज......फोन नहीं रखना, मैं जानती हूँ, मैंने आपका विश्वास तोड़ा। मैं बहुत पछता रही हूँ कि घर से भागकर मुंबई आ गई....मैं यहाँ बहुत परेशान हूँ, पापा!.....मैं तुरंत घर लौटना चाहती हूँ। पापा प्लीज....!
एक बार....सिफर्. एक बार कह दीजिए कि आपने मुझे माफ कर दिया!’’ उसने फोन पर ‘हैलो’ सुनते ही गिड़गिड़ाना शुरू कर दिया था।
‘‘बेटी, तुम कहाँ हो? तुम जल्दी ही घर लौट आओ। मैंने तुम्हारी सब गलतियाँ माफ कर दीं...।’’ कहकर उस आदमी ने फोन रख दिया।
पचास वर्षीय वह कुँवारा–प्रौढ़ सोचने लगा कि उसकी तो शादी ही नहीं हुई, यह बेटी कहाँ से आ गई? लेकिन वह तत्काल समझ गया था कि किसी भटकी हुई लड़की ने उसके यहाँ रांग नम्बर डायल कर दिया था। बहरहाल, उसे इस बात की खुशी थी कि उसकी आवाज उस लड़की के पिता से मिलती–जुलती थी और उसने उसे ‘रांग नंबर’ कहने की बजाय ठीक जवाब दिया था।
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