खाट के नीचे से उसे कुछ खुसर–पुसर की आवाज सुनाई दी तो वह उठ बैठा और बत्ती जलाकर इधर–उधर देखा, कोई नहीं था। उसने टेबल–लैंप बुझा दिया और कुछ सोचता हुआ लेट गया।
उसे फिर सुनाई दिया, माफीनामा–माफीनामा। बस यही शबद उसके पल्ले पड़ रहा था। वह उठ बैठा और टेबल लैंंप जलाकर हाल में लिखे ताजा पत्र को पढ़ने लगा जो उसने अखबार के मालिक को लिखा था। उसमें कहा था ि कवह सरकार के खिलाफ नहीं लिखेगा। छ: महीने की बेकारी ने न केवल उस पर कर्जा चढ़ा दिया था बल्कि गंभीर रूप से बीमार पत्नी और बच्चों का भविष्य भी संकट में पड़ गया था। वे सब उसी के कारण मुसीबत झेल रहे थे। ऐसी लानत भरी जिंदगी से तो अच्छा है, सेठ से माफी माँग ली जाए। कुछ नहीं रखा इन सिद्धांतों–विद्धांतों में।
उसने बत्ती बुझाई और नए निश्चय के साथ चारपाई पर लेट गया। उसी समय उसके कान में माफी–माफीनामा शब्द सुनाई पड़े। वह आतंकित हो उठा।
वह झटके से उठा और टेबल लैंप जलाकर ताजे लिखे पत्र को पैड में से फाड़कर चिंदी–चिंदी करके खाट के नीचे बिखेर दिया।
यद्यपि अब की बा रवह चौकन्ना था लेकिन काफी देर तक उसे माफीनामा जैसा शब्द सुनाई नहीं दिया।