लड़ाई पूरे जोरों पर चल रही थी। दोनों पक्ष किसी–न–किसी मोर्चे पर एक–दूसरे के इलाके में घुसे हुए थे और माततृभूमि के लिए जी–जान से अपना कर्तव्य निभा रहे थे।
अचानक युद्ध विराम की घोषणा हुई। थोड़ी देर में स्थिति स्पष्ट हो गई। दोनों देशों के जवान सीमा में आमने–सामने थे लेकिन अब उनका रूप आक्रामक न होकर स्तब्धकारी था।
‘‘तुम्हारे पास बीड़ी है?’’ दुश्मन के जवान ने दूसरे देश के जवान से पूछा। ‘‘मेरे पास तो नहीं, पर ठहरों मैं अपने साथी से पूछता हूँ।’’
आठ घंटे के भीतर ही दोनों देशों के जवान घरेलू बातों पर उतर आए और खेती, लड़के की शिक्षा, लड़की की शादी तथा पत्नी की जिम्मेदारी की बाबत अपने अपने अनुभव सुनाने लगे। इस बीच दुश्मनों से घिरे जवानों ने आपस में बाँटकर खाना खाया और इस प्रकार गीत–संगीत का आदान–प्रदान होने लगा।
‘‘यार हम आपस में खून–खराबा क्यों करते हैं?’’ क्यों लड़ते हैं एक–दूसरे से?’’ यह बात किसी जवान ने काफी रात गए किसी दुश्मन फौजी से पूछी थी, जो चुपचाप लेटा गहन आकाश में तारे गिन रहा था।
‘‘हाँ यार, झगड़े तो बातचीत में भी निपटाए जा सकते हैं, पर हुक्कमत के दिमाग को क्या कहें, जो सरकार चाहेगी वही तो होगा।’’
इधर ये दोनों जवान भाईचारा निभा रहे थे। उधर दोनों देशों के रेडियो पर खबर अपने–अपने ढंग से प्रसारित कर रहे थे, अस्थाई युद्ध विराम भंग। वार्ता असफल। देश की जनता अंत तक दुश्मनों का मुकाबला करेगी।
वे जवान जो कुछ ही घंटों में भाई बन गए थे। अब एक–दूसरे के खून के प्यासे थे।