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ब्लैक हॉर्स

ड्रांइगरूम में फैल रही मादक कहकहों की गूँज के बीच वह बोला, ‘‘क्यों नहीं....क्यों नहीं सर, अभी इंतजाम हो जाता है, आप फिक्र न करें, मैं अभी आया।’’
वह रसोई में आया तो पत्नी बदहवास–सी, शायद तड़की हुई दाल फिर गरम कर रही थी, ‘‘क्यों खाना कब खाओगे?’’
‘‘तुम ऐसा करो एक प्लेट सलाद और बना दो, और हाँ, जरा माँ को तो बुलाओ.....कहाँ है?’’
‘‘अपने कमरे में, क्यों?’’
‘‘जरा बुलाओ तो...आज तुम खूबसूरत लग रही हो!’’
‘‘देखो ज्यादा मत पी लेना....आप पहले ही....’’ पतिव्रता पत्नी कुछ और कहना चाहती थी पर पति की लाल आँखें देखकर वह पल्लू से पसीनेवाला मुँह पोंछती हुई निकल गई...
माँ रुद्राक्ष की माला जपते हुए बेटे तक आई तो शराब की तीखी गंध से दो कदम दूर रुकती हुई बोली, ‘‘हाँ बोल, क्या काम है...खाना–वाना हो गया?’’
‘‘वो तो हो जाएगा मां...मेरी प्यारी माँ, साहब आज बहुत खुश हैं। जरा एक बात कहनी थी, पिताजी से कुछ मँगवाना था।’’ ऐसा कहते ही वह खिसियाए अंदाज में मुस्कराया और डगमगाया हुआ खड़ा होने की कोशिश करने लगा।
माँ को अब उसके अंदाज पर गुस्सा नहीं आता है, इन दो सालों में ही उसने जर्जर पुश्तैनी मकान को तुड़वाकर नया बनवा लिया है जिसे गिरवी रखकर लड़की के हाथ पीले किए थे। बच्चे महँगे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ रहे हैं, बहू को भी मनपसंद साडि़यों से लाद दिया है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि लोग–बाग उसे ‘आवारा निखट्टू’ की बजाए ‘अफसर’ कहने लगे हैं, बाप तो जिंदगी भर बड़ा बाबू रहा और उसी पर रिटायर हुआ।
‘‘क्या सोच रही हो माँ, अभी उन लोगों को खाना खिलाना है।’’
तभी पिता उसके सामने आ खड़े हुए तो उसने चेहरा झुका लिया। बेटे की मादक हालत देखकर वह बोले, ‘‘क्यों क्या हुआ रवि, खाना–वाना नहीं हुआ?’’
वो पापा, साहब के लिए....’’
‘‘हाँ–हाँ, क्या लाना है, बोल क्या लाना है?’’ और पत्नी को थैला लाने का आदेश दिया।
उसे यकीन था कि शराब का नाम सुनते ही पिताजी उबल पड़ेंगे, ‘‘तेरी ये जुर्रत, बाप से शराब मँगवाए। अरे, इससे अच्छा तो होता मैं मर जाता। मैंने जिंदगी भर बीड़ी को हाथ नहीं लगाया, बेईमानी–रिश्वत के पैसे की शान दिखाता है। थूकता हूँ ऐसी तरक्की पर!’’
मगर पिताजी बोले, ‘‘देखो बेटे, तुम अपने साहब के पास जाकर बैठो। ला रवि की माँ, थैला दे मुझे । बता, किस ब्रांड की लानी है?’’ उसका नशा हिरन हो गया और वह बस, इतना ही कह पाया, ‘‘ब्लैक हॉर्स।’’

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