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लघुकथाएँ - संचयन - एन.उन्नी
कुत्ता

हमेशा की तरह अत्यधिक मदिरापान की खुमारी से सोकर उठे पिता ने पुत्री से कहा, ‘‘अरी ओ! पेट जल रहा है, दो–एक रुपए तो निकाल, जरा चाय–पानी हो जाए।’’
एक बेनाम लेकिन गहरी ईर्ष्या से पुत्री ने पूछा, ‘‘मेरे पास कहाँ रुपैया....’’
पिता को गुस्सा आया। वह जोर–जोर चिल्लाया, ‘‘तेरे पास रुपया नहीं है तो फिर रात–भर कुत्ता क्यों भौंका?’’
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