गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
रास्ता

यह मेरा दुर्भाग्य था कि मैं उस जैसे बड़े और संपन्न व्यक्ति का रिश्तेदार था। कई बार अपनी हीनता को परे रखकर मैंने चाहा था कि उनके पास ही आऊँ ; लेकिन उनकी चमचमाती कोठी और दरवाजे पर लिखे ‘कुत्ते से सावधान’ की तख्ती ने हमेशा पाँव बाँध दिए। लेकिन इस बार जाना ही पड़ा। उनकी सिफारिश मेरी नौकरी पर लटकती तलवार के खतरे को कम कर सकती थी। हिम्मत करके पहुँचा, अपना परिचय दिया तो वे आशा के विरुद्ध बहुत तपाक से मिले। छोटे मुन्ने से लेकर बूढ़े बाबा तक के हाल पूछे। हाल पूछ कर वे अचानक उठ खड़े हुए और बोले.....’’ आइए, आपको अपनी कोठी दिखाऊँ । ये ड्राइंग रूम है, ये किचन है, ये पूजाघर, ये...और ये सर्वेंट हाउस। ये लाल पत्थर खास फतेहपुर सीकरी से आए हैं।’’ आगे बढ़ते हुए उन्होंने बताया कि उनका खानसामा जोजफ बूढ़ा है तो क्या हुआ, अंग्रेजों के यहाँ काम कर चुका है और ये नौकरानी कमलम् केरला की है। उसी समय उछलता कूदता कुत्ता वहाँ आ पहुँचा और मुझे उसने इस तरह घुड़का कि बस......। उन्होंने बड़े प्यार से हाथ फेर कर उसे ‘नार्मल’ किया। ‘‘यह है टिंकू, असली अल्शेसियन। उसका पेयर भी है। उसका नाम है डॉली।’’ ड्राइंग रूम में वापिस जाकर उन्होंने धाराप्रवाह बताना शुरू कर दिया, ‘‘यह ‘अलार्म वाच’ मैंने नेपाल से खरीदी थी। ये देखिए ‘वाल हैंगिंग’ कुवैत से लाया था। यह टेबुल लैंप भी इंपोर्टेड है बड़ा ‘कास्टली’।’’ यह ‘कैक्टस’ बहुत ‘रेयर’ है। आइए अपने ‘लॉन’ में और भी वेराइटीज हैं। लॉन के गुलाबों को छूते हुए वे मगन से हो गए, ‘‘ये ‘येलोरोज’ आपको पूरे शहर में नहीं मिलेगा। ये रहा फ़्रेंच कैक्टस....’’ वे न जाने किन–किन फूलों और पेड़ों के नाम लेते रहे। मेरा धैर्य जवाब दे चला था। अचानक वे चुप हो गए। मुझे बहुत राहत मिली। लेकिन चुप्पी क्षणिक ही रही। कुछ सोचते हुए से बोले, ‘‘सोच रहा हूँ कि आपको अब और क्या दिखाऊ?’’ मेरे मुँह से सहसा निकल गया। -‘‘बाहर जाने का रास्ता।’’

 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above