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नीति

‘‘च्यों इन नीचन कूं सर माऊं चढ़ाय रए औ। वैसेई चाँद पै नाचुत हैं। अब इन्हैं पढ़ा–लिखाय कै का कलट्टर ई बनाय द्योगे। हमाई तो...।’’ नंबरदार बहुत गुस्से में थे। विधायक जी हरिजनों के टोले में एक स्कूल खुलवा रहे थे। इसी सिलसिले में वे नंबरदार के यहाँ आए थे। नंबरदार ने अपने गुस्से को बिल्कुल नहीं छिपाया।
‘‘आजादी क्या मिली सबेरे सुग्गा–मुग्गा जवाहरलाल ई बन गए।’’ उन्होंने विधायक जी से साफ कह दिया कि यही हाल रहा तो इस बार ‘बूथ कैपचरिंग में वे कोई मदद नहीं करेंगे। सालों ने खेत में काम करने में सौ नखरे कर दिए हैं। उनका इलाज सिर्फ़ जूता है। लेकिन आप लोग रोक देते हैं कि हमारे ‘सालिड वोट’ हैं। अब इन्हें पढ़ा–लिखा कर और सत्यानाश कर दो हमारा।
विधायक जी ने मुस्कराते हुए नंबरदार को शांत किया। उन्होंने समझाया, ‘‘जब बैल मस्ता जाता है तो क्या करते हो? बधिया कर देते हो न। हम भी यही कर रहे हैं। समझे न। तुम्हारी जूतागिरी बराबर चलती रहेगी। ‘नीति’ को समझो। जहाँ गुड़ काम कर जाए, वहाँ जहर का इस्तेमाल नहीं करते। समझे।’’ लगा कि नंबरदार काफी कुछ समझ गए हैं।

 
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