बच्चे ने कब मेरी जेब से पेन निकाला, मुझे पता ही नहीं चला। देखते–देखते उसने पैन की कैप उतार ली। निब फर्श पर मारने को हुआ तो मैंने तुरंत उसके हाथ से पैन छीन लिया । वह जोर–जोर से चिल्लाने लगा। उसे शांत करने के लिए पेन देना पड़ा। उसने तुरंत कैप खींची और पेन का रिश्ता फिर फर्श से जोड़ने लगा। पेन बहुमूल्य था और मैं नहीं चाहता था कि बच्चा खेल–खेल में उसे बेकार कर दे।
मैंने बच्चे का ध्यान बँटाया। पेन उसके हाथ से छीनकर फुर्ती से अपना हाथ पीठ के पीछे किया, दूसरे हाथ से ऊपर की ओर संकेत करते हुए कहा, ‘‘पेन....चिया।’’ इस बार वह रोने की बजाय आकाश की ओर नजर उठाकर चिड़िया को देखने लगा। उसके भोले मन ने मान लिया कि पेन चिड़िया ले गई।
एक दिन वह बर्फ़ी का टुकड़ा खा रहा था। मैंने कहा, ‘‘बिट्टू बर्फ़ी मुझे दो।’’ उसने तुरंत बर्फ़ी वाला हाथ पीठ के पीछे किया और तुतलाती भाषा में कहा, ‘‘बर्फ़ी..चिया.....।’’