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लघुकथाएँ - संचयन -चंद्रभूषण सिंह ‘चंद्र’
हमका नहीं पढ़ाना
पूरी की पूरी दुनिया बदल गई, परन्तु वह शिक्षक नहीं बदला। जब उसे ज्ञात हुआ कि भोलाराम के बेटे राजेन्द्र ने एक सप्ताह से विद्यालय आना छोड़ दिया है, तो एक दिन वह उसके घर पहुँच गया। जब शिक्षक ने भोलाराम से राजेन्द्र की अनुपस्थिति के बारे में कहा, तो भोलाराम ने तपाक से कहा, ‘हमका रजिन्दरा को अब नहीं पढ़ाना।’
‘भाई, कुछ कारण तो होगा?’
‘आप रजिन्दरा को एक हफ्ता पहले मारा?’ वह शिक्षक याद करने लगा। कुछ मिनटों के बाद उसने बतलाया कि उसने राजेन्द्र को ताड़ी पीने के लिए पीटा था।
इतना सुनना था कि भोलाराम उठा, ‘ई तारी नहीं पीएगा, तो दूध पीएगा? घी खाएगा? माहटर साहेब, इ पासी का बेटा है। तारी उतारना, तारी बेचना और तारी पीना त इसका कमबे है।’
‘भोलाराम, इन गन्दी आदत से बच्चे बचे रहें तो अच्छा है।’
ठसके बाद भोलाराम ने जो कहा, उसे सुन शिक्षक चुपचाप लौट गए।
‘आप इसकूल में पढ़ाने आया है कि हमका रोजी बिगारने। आप रजिन्दरा को नौकरी दे सकता है?’
 
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