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लघुकथाएँ - संचयन -चंद्रभूषण सिंह ‘चंद्र’
गुरु–दक्षिणा
डाकू–दल को आता देख सब लोग डरकर छिप गए। दरवाजे पर रहने वाले गुरुजी ने , जो परिवार के बच्चे को ट्यूशन पढ़ाते थे, डाकू–सरदार को पहचान लिया। वे अश्वस्त हुए कि अब तो उनकी जान बची,क्योंकि वह उनका शिष्य रह चुका था। वे अपने बिछावन पर ही रहे।
इसी बीच सरदार ने निर्देश से कुछ डाकू उनकी ओर बढ़े और पिटाई शुरू की। गुरुजी चिल्लाते रहे, पिटाई चलती रही। अच्छी पिटाई करने के बाद प्राप्त–धन लेकर वे सब चले गए।
अस्पताल में भर्ती गुरुजी से अनेक लोग मिलने आए जिनमें डाकूओं का वह सरदार भी था।
प्रणाम कर उसने इतना ही कहा, ‘यदि मैं आपको कुछ नहीं कहता तो पुलिस आप पर शक करती और पीटती। अत: पुलिस से बचने के लिए ऐसा करना पड़ा।’
 
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