गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
लघुकथाएँ - संचयन -चंद्रभूषण सिंह ‘चंद्र’
निर्णायक कदम
कर्ज में डूबा देवचरण अपने एक मात्र बेटे को मौत के मुँह में देखकर काँप जाता है। उसके कदम महाजन के घर की ओर चल देते हैं। कुछ दूर जाने के बाद सड़क की बगल में बने गड्ढे से एक साँप के मुँह में पड़े मेढ़क का आ‍र्त्तनाद सुनकर रुक जाता है। वह भी तो महाजन के मुँह में पड़ा एक मेढ़क ही है। मेढ़क जोर से टर्राता है और बाहर निकलने की कोशिश करता है। और साँप मुँह फैलाकर–फैलाकर उसे निगलता ही जाता है। देवचरण एक क्षण के लिए (ख्याल में) घर लौट आता है, पत्नी,बेटा और अपने अलावा एक सुन्दर–सा बछड़ा भी तो उसी के परिवार का ही एक सदस्य है। यदि उसे वह बेच दे तो। ऐसा सोचते ही उसका हृदय भर जाता है।। वह अन्तर्द्वन्द्व में पड़ जाता है। वह भी तो एक तरह से उसका बेटा ही है। उसके दुख–सुख का साथी है। बछड़ा उसके दुख को हल्का करता है। जब उसकी तन्द्रा टूटती है तो साँप मेढ़क को पूरा निगल चुका होता है। उसके मस्तिष्क में एक विचार कौंधता है कि कहीं देर होते–होते उसका महाजन भी उसे न....! वह लौट पड़ता है। बैल के गले में बाहें डाल पुचकारता है और रो पड़ता है। याददाश्त के लिए सोनपुर मेले से लाई गई घण्टी को खोलकर घर में रख देता है और उसे मेले की ओर हाँक देता है।
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above