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लघुकथाएँ - संचयन - राजेन्द्र वामन काटदरे
सासू माँ
लेडीज क्लब में चलते–चलते बात महरी और आया पर आ गई। सभी अपनी महरी और बच्चों को सँभालने वाली आया की बुराई में जुट गई। किसी को उनका बार–बार पगार बढ़वाना अखरता था तो कोई उनके नागों और छुट्टियों से नाराज थीं। किसी को शक था कि महरी घर का सामान चुरा लेती है तो कोई किसी अन्य कारण से परेशान थी।
मिसेस दास कौतुक से इन सभी की बातें सुन रही थी। उनसे जब उनकी महरी के बारे में पूछा गया तो वह मुस्कुरा कर बोलीं, ‘हमें कोई प्राब्लम नहीं है, हमारे यहाँ तो सासू माँ हैं ना।’
 
 
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