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लघुकथाएँ - संचयन - राजेन्द्र वामन काटदरे
अँधेरे के खिलाफ
पत्नी की बीमारी, भ्रष्टाचार के मिथ्या आरोप तथा महीनों रुका वेतन,उसका मनोबल टूटना स्वाभाविक ही था। बहुत सोच–विचार क रवह जहरीली गोलियाँ ले आया, जिन्हें वह दूध में मिलाकर पत्नी और बिटिया के साथ पी जावेगा। उसे सहसा पत्नी और बिटिया पर तरस आने लगा तो उसके खूंखार इरादों से अनजान थीं।
रात नौ–साढ़े नौ बजने को थे। बारिश–बिजली और तेज हवाओं से वातावरण बोझिल हो चला था। बस कुछ समय और, फिर तमाम चिंताओं–परेशानियों से सदा के लिए मुक्ति, उसने सोचा और दूध गैस पर गर्म करने के लिए रख दिया। उसने शक्कर के साथ गोलियाँ भी दूध में डाल दी तभी अचानक लाइट चली गईं
‘शिट–शिट’ उसने झल्लाते हुए मोमबत्ती जलाई जो हवा के कारण तत्काल बुझ गई। उसने फिर जलाई। इस बार ऋचा, जो पास ही खड़ी थी, अपने नन्हें हाथों की ओट कर खिड़की से आ रही तेज हवाओं से काँपती मोम्बत्ती को बुझने–से बचाने की भरसक कोशिश में लग गई। कुछ क्षणों तक वह अपलक यह दृश्य देखता रहा फिर अँधेरे के खिलाफ जंग में वह भी शामिल हो गया और उसने जहरीला दूध सिंक में उंडेलकर नल चालू कर दिया।
 
 
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