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लघुकथाएँ - संचयन - शील कौशिक
पाकेटमारी
“इसने शराब पी रखी है। खतरे से तो बाहर है, पर चोट काफी लगी है। इसलिए यहाँ एडमिट करना पड़ेगा।” डॉक्टर ने मोटर-साइकिल सवार का मुआयना करते हुए कहा।
“क्या आप इसके खिलाफ एफ.आई.आर. लिखवाएँगे?” डाक्टर ने साथ आए श्री पारीक से पूछा।
“इसने शराब के नशे में मेरी कार को टक्कर मार दी। कार का काफी नुकसान हुआ है। गलती तो इसकी थी। इसे और इसके माँ-बाप को कुछ तो सबक सिखाना चाहिए।” कार के मालिक श्री पारीक ने उत्तेजित स्वर में कहा।
“छोड़ो भी, आपके नुकसान की भरपाई तो इंश्योरेंस के क्लेम से हो जाएगी। सोच लो आपका अपना बच्चा है, गलती हो गई, माफ कर दो इसे।” डॉक्टर ने समझाया।
श्री पारीक ने डॉक्टर की बात मान ली।
डॉक्टर ने लड़के के घर वालों को डराया, “आपका बचाव इसी में है कि आप इसे यहीं दाखिल रहने दें। कार वाला केस करने की धमकी दे रहा है। मैं किसी तरह उसे मना लूँगा”
डॉक्टर की जेब गर्म हो गई।
उधर पुलिस वाले ने श्री पारीक से पूछा, “बोलो रिपोर्ट लिखवानी है क्या?” और उन्हें सोच में पड़ा देख कहा, “छोड़ो साहब! नादान बच्चा है, गलती कर बैठा। आप कोर्ट-कचहरी के चक्कर में पड़े रहेंगे और इस बेचारे का कैरियर चौपट हो जाएगा।”
एक क्षण के लिए श्री पारीक को अपने जवान बेटे का ख्याल आया। वे तुरंत बोले, “मुझे रिपोर्ट नहीं लिखवानी।”
तब पुलिसवाले ने लड़के के घर वालों को कहा, “तुम्हारे बेटे के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाई जा रही है, केस रफा-दफा करवाना है तो कुछ करो…।”
 
 
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