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लघुकथाएँ - संचयन - कालीचरण प्रेमी
आँसू
ठाकुर साहब के घर आज खास मेहमान आने वाले थे. उन्होंने स्वागत सत्कार का पूरा इंतजाम किया था. कहीं-कोई कोर-कसर बाकी नहीं रह गई थी. बस कुछ खटक रहा था तो वह पिछबाड़े से आतीं रोने-धोने की आवाजें.
हरिया का जवान लड़का सख्त बीमार चल रहा है. डाक्टरों ने भी जवाब दे दिया है.
‘स्साला कहीं मर-मरा न जाए. पूरा पिछवाड़ा गला फाड़कर चीखेगा. अपने मेहमानों का सारा मजा किरकिरा हो जाएगा. आखिर किया क्या जाए?’ ठाकुर साहब चहलकदमी करने लगे.
‘भई हरिया!’ कुछ सोचकर ठाकुर साहब पिछवाड़े वाले मकान में जा धमके, ‘देख आज मेरे घर में बहुत बड़े-बड़े आदमी आने वाले हैं. रोने-पीटने की बिलकुल जरूरत नहीं है. थोड़ा-सा ध्यान रखना.’
और उस रात हरिया अपने जवान बेटे की मौत पर भी नहीं रो सका.
 
 
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