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लघुकथाएँ - संचयन - कालीचरण प्रेमी
हाथी का बच्चा
कब? कैसे? उस बच्चे की टाँगों को कुचलती हुई एक कार हवा हो गई. यह उसकी दर्दनाक चीख से पता चला. आनन-फानन में भीड़ जुट गई. दरोगा जी भी अपने डंडे और मूँछों की सक्रियता के साथ कहा—‘चलो! ऐ....’ करते हुए आ धमके.
‘किसका बच्चा है?’
बच्चा बेहोश था. दरोगा जी ने उस बच्चे को ध्यान से घूरा. फिर चारों ओर घूमकर एक चक्कर लगाया. बच्चा मैली-सी कमीज पहने था. सिर के बाल रूखे-सूखे थे. उन्होंने मन ही मन अंदाजा लगाया—
‘स्साला, किसी नीच जाति का पिल्ला है. हरामी देखकर चलते नहीं. मां-बाप पैदा करके सड़कों पर छोड़ जाते हैं. हम लोग खामख्वाह परेशान होते हैं. दरोगा जी की पारखी नजरों ने तोला.
‘दरोगा जी, यह तो हमारे गाँव के प्रधान जी का लड़का है.’ तभी भीड़ में पहचानते हुए कोई चिल्लाया.
‘अच्छा!’ दरोगा जी अंदर ही अंदर खुशी से मुस्कराए—‘जय हो ऊपर वाले की. यह तो हाथी का बच्चा है.’
अगले ही पल दरोगा जी ने एक टैक्सी रुकवाई और बच्चे को अस्पताल के लिए लदवा दिया.
 
 
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