प्रभात जहर की शीशी अपने मुँह में उड़ेलना ही चाह रहा था कि एक झटके से शीशी दूर जा गिरी। देखा, सामने पापा खड़े हैं। वह सिहर उठा, किंतु तत्क्षण ही बिफर पड़ा, ‘‘मुझे मर जाने दीजिए, मैं जीना नहीं चाहता हूँ....’’
‘‘पर, बात क्या है बेटे ?’’
‘‘आज आई.एस सी. का रिजल्ट आया है पापा! शशि भूषण अव्वल आया, जिसे मैं पढ़ाया करता था और मैं फेल हो गया। यह सब प्रोफेसर मेहरा का काम है। शशि भूषण उनसे ट्यूशन पढ़ता था, फिर वह उनकी जाति का भी है, जबकि मैंने कभी उन्हें अनावश्यक महत्त्व नहीं दिया और न ही उनसे ट्यूशन पढ़ा। प्रोफेसर मेहरा ने मुझे प्रैक्टिकल में केवल आठ नंबर दिए, जबकि पास होने के लिए बीस नंबर चाहिए थे।’’
‘‘अच्छा, यह बात है। इतनी छोटी–सी बात पर आत्महत्या कर रहे हो?’’
‘‘आप इसे छोटी–सी बात कहते हैं? यहाँ मेरी जिंदगी बर्बाद हो रही है?’’
‘‘ठीक है, इस बार फेल हो जाने से तुम्हारी जिंदगी बर्बाद हो रही है तो तुम आत्महत्या कर लो। मैंने तुम्हें हमेशा अपने ढंग से जीने की स्वतंत्रता दी है, तो आज मरने की आजादी भी दूँगा, किंतु आत्महत्या से पहले मेरे एक प्रश्न का उार दोगे?’’
‘‘क्या?’’
‘‘यदि तुम फिर से परीक्षा देकर पास कर जाओ। फिर बी.एच.सी. एवं एम.एस.सी. भी कर जाओ। भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में बैठो और चुन लिए जाओ। शासन में जिलाधीश से लकर आयुक्त और मुख्य सचिव तक बनो। तुम्हारी प्रशासनिक कुशलता को देखकर तुम्हें राज्यपाल बना दिए जाए और इसके बाद तुम क्रमश: किसी दूतावास के उच्चायुक्त से लेकर इस देश के राष्ट्रपति तक बनो। जीवन में अनेक उपलब्धियों को प्राप्त करने के बाद अंत में तुम्हें अपनी जीवनी लिखनी पड़े तो उसमें इस फेल होने वाली घटना की चर्चा किस रूप में करोगे?’’
‘‘इतनी सारी उपलब्धियों को प्राप्त कर लेने के बाद अंतिम दिनों में अपनी जीवनी लिखते समय तो मैं शायद इस घटना को याद भी नहीं रख पाऊँगा, इसकी चर्चा की तो बात ही अलग है।’’
‘‘सफलता के अति उच्च शिखर पर पहुँचकर अपनी जीवनी लिखते समय जिस घटना को तुम याद भी नहीं रख सकोगी, फिर उस छोटी–सी घटना के कारण आत्महत्या क्यों कर रहे हो?’
प्रभात की आँखें एकाएक अनंत विस्तार पा गई। सहसा वह कुछ बोल नहीं सका, पर उसकी चेतना सोते से जाग उठी। पापा ने निर्णायक स्वर में कहा, ‘‘बेटे, अपने रास्ते में कांटे बिछाने वाले को प्रणाम कर आगे बढ़ जाओ। सफलता तुम्हारी राह देख रही है।’’