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लघुकथाएँ - संचयन - नरेन्द्र कुमार गौड़
चुनाव
हरिजन की छोरी और उसकी माँ दोनों खेते में घास खोद रही थीं कि ऊपर से खेत का मालिक चौधरी आ गया। देखते ही चौधरी दहाड़ा–‘‘यो कौण बड़ रया सै खेत में बिना पूछे?’’ चौधरी की गरजना से मां–बेटी का खून जमकर बर्फ़ हो गया था। उनकी हालत मेमनों के सामने अचानक शेर आ जाने जैसी हो गई थी। अब चौधरी उनके साथ क्या सलूक करेगा कुछ पता नहीं।
किन्तु, चमत्कार!
चौधरी मीठी हँसी हँसते हुए बोला–‘‘ही–ही–ही–– फो हरिजन की बहु सै के? कोए–बात ना। अपणे–ए खेत सैं। जब मर्जी आ जाया करो न्यर लेवण।’’ बेटी, गन्ने चूसण नै जी करै तो पाड़ लिए खेत में से– फो की छोरी की तरफ मुड़ते हुए चौधरी ने कहा, ‘‘और अपने बापू को कहिए एक बै मेरे तै आकै मिले’’–यह कहकर चौधरी वहाँ से चला गया।
नादान बेटी का समझ में चौधरी के दो चेहरे समण् म्ें नहीं आए अत: जिज्ञासा शान्त करने के लिए उसने अपनी मां से पूछ ही लिया। इस पर मां बोली–बेटी, चौधरी का पहला चेहरा ही असली चेहरा था। किन्तु ज्योंही उसे याद आया कि गांव में सरपंची के चुनाव होने वाले हैं उसने तुरंत नम्रता और अपनेपन का नकली चेहरा ओढ़ लिया। ये सब चुनावों का कमाल है, बेटी। यह कहकर मां ने गहरी सांस खींचकर बाहर छोड़ी और दोबारा ास खोदने लग पड़ी। नादान बेटी अब भी कुछ नहीं समझ पाई थी।
 
 
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