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लघुकथाएँ - संचयन - ऋता शेखर ‘मधु’
माँ
आज मैं अपनी सहेली को लेकर अस्पताल गई थी| मैटरनिटी वार्ड में उसे भर्ती किया| सहेली की माँ या सास में कोई पहुँच नहीं पाई थीं इसलिए मैं ही लेकर गई थी | मैं वहीं बाहर बैठी थी| तभी वहीँ एक फ़ैमिली आई| उनके घर भी नया मेहमान आने वाला था| लड़की कम उम्र की ही थी| बातों से लग रहा था कि लड़की के मैके और ससुराल, दोनों ही तरफ़ यह प्रथम सन्तान थी |
लड़की के साथ दो महिलाएँ आई थीं| दोनों के ही चेहरे पर चिन्ता की रेखाएँ साफ़ झलक रही थीं| लड़की जब अन्दर जाने लगी तो दोनों ने ही उसे प्यार किया | लड़की दोनों को माँ कहकर सम्बोधित कर रही थी| जब वह अन्दर चली गई तो दोनों महिलाएँ वहीं बैठ गईं|
मैं यह तय नहीं कर पा रही थी कि उनमें लड़की की माँ कौन है और सास कौन है| क़रीब एक घंटे के बाद पता चला कि लड़की ने बेटे को जन्म दिया था | दोनों महिलाओं ने गर्मजोशी से एक दूसरे को बधाइयाँ दीं| मैं अभी भी उलझन में थी कि कौन माँ है और कौन सास|
तभी जच्चा और बच्चा दोनों ही बाहर आए | बच्चा नर्स की गोद में था| एक महिला दौड़कर नर्स के पास पहुँची और बच्चे को गोद में ले लिया| उसकी खुशी छुपाए नहीं छुप रही थी |
दूसरी महिला लड़की के पास गई और इस कष्ट से उबरने के लिए उसे प्यार करने लगी| एक झटके में ही मेरी समझ में आ गया कि लड़की की माँ कौन थी |
 
 
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